सस्ता शायर, सस्ते नज़्म
“ग़ालिब के दुरके चचेरे भाई के पड पड पड पड पोते के दोस्त की कलम से”
दिल और दायरा
दायरों की समझ नही है इस दिल को..
ये दिल हरफन मौला नही है जो युहीं भटकता रहे..
इसे बस एक मंज़िल की तलब है ।
जो दायरों मै अपनी मंज़िल ढूंढ़ने लगे..
तो फिर कमबख्त इस दिल का क्या काम।
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एक आरज़ू की मौत
एक आरज़ू जवानी से पहले ही मर गया..
उसको मैं ज़मीन के नीचे दफना आया |
जलता तो धुएं से ज़माने को खबर हो जाती |
अब उस ज़मीन पर कोई पैर भी रखदे तो कोई हर्ज़ नही..
तकलीफ उसको जिसने आरज़ू खोया, ज़माना खुदगर्ज़ सही ।
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नशीले रिश्ते
में टीटोटलर ही आया था इस ज़मीन पर ..
रिश्ते बुनते गए और मै बेवड़ा बनता गया..
दत्तत मिला तो उसने सुट्टा लगाया..
श्रीकांत मिला तो व्हिस्की पी ली..
अरुण और चड्ढा जी ने रम पिलाई..
सुनील मिला तो वोदका पी ली..
राजा और बबलू ने बियर पिलाई ..
एक परेश और सुव्रा थे जिन्होंने चाय पिलाई..
वरना कसम से रिश्तों से अल्कोहल की बू आने लगी थी ।
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रेत के ख्वाब
मैं ही अँधा था जो रेत के ढेर को पर्वत समझ बैठा..
जब शिखर पर पहुँचने की जुस्तजू की तो..
खुद ही अपने गलत-फेहमी के रेत मै धस गया..
अब तो नीचे उतरना भी मुश्किल हो गया..
और रेत का ढेर मेरे सपनो की तरह बिखर गया ।
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क़ातिलाना लफ्ज़
एक लफ्ज़ मुझे अक्सर परेशान करता है|
लब से उनके जो निकले हमारे लिए..
तो ये दिल कई बार मरता है|
उस लफ्ज़ को ज़िंदा दफना दूँ..
ये ख्वाइश है अब |
मै क़ैद परिंदा नही हूँ..
खुदा से फरमाइश है अब |
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लब से एक बार जो निकल जाता है..
जैसे तीर कमान से निकलता है |
कभी खूबसूरत रिश्ते बना जाता है..
कभी मजबूत रिश्ते तोड़ देता है..
और कभी रिश्ते बनने से पहले खो देता है ।
प्यार से निकले तो अनजान दिलों को जोड़ता है
घमंड से निकले तो दूरियां बढ़ाता है
क्रोध से निकले तो अपनों का दिल दुखाता है
और बिना सोचे समझे निकले तो मूर्खता है और कुछ नही !